Sunday, 10 April 2011

श्रीलक्ष्मीनृसिंह आरती


जयदेव जयदेव जय नरहरी अवतारा
श्रीकर श्रीवर श्रीधर विधिकर श्रुतीसारा 
सैत्यी ऊर्वी पूर्वी त्रासित अतिनिकरी 
क्षीरसागरी प्रार्थिती सुरमुनी अवधारी 
ऐकुनी कृपे द्रवला श्रीप्रभू अंतरी 
म्हणे ना मी सर्वा श्रीगुरू कैवारी         
जयदेव जयदेव .....
भक्तमुखी श्रीस्तंभी क्रोधे अवतरले                               
कडकड शब्द होता फणीवर सूर लवले
अग्नी धाके कूर्म मेरू नग खचले 
तटतट तुटती तारे सागर कालवते
जयदेव जयदेव ....
भू कंपित पाताळे स्वर्गादी गगन 
डळमळली ब्रह्मांडे चंडांशु पवन
हिरण्य कशीपू अंकी स्वनखे विदारून 
अंतर्माला घाली श्रीसिंहवदन
 जयदेव जयदेव ....
सुरेन्द्रादि अमर श्रीसह सन्निध |
प्रळादादिक स्तविती तोपुनि अनिरुद्ध |
नखे रोविता औदुंबरी हरिता विषक्रोध |
जयजयकार करिती सुरमुनी अगाध || जयदेव जयदेव...
औदुंबर कल्पद्रुम करुनी प्रख्यात  |
लक्ष्मीनरसिंह  सर्वही वर देत |
जाणुनी राहे नरहरी तरुतळी अतिप्रीती |
पद्तीर्थामृत गंगा सेवित गुरुभक्ती |||| जयदेव जयदेव .....

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